Saturday, April 20, 2013

आओ !निकाले कुछ पल ..

आओ !निकाले कुछ पल ...
बस अपने लिए .....
जिए कुछ क्षणों को फिर से ..
उतार कर स्मृतियों में फिर ...
भूल जाएँ चलो हर फर्ज हर दायित्व ...
खो के सिक्कों की खनक में ...
बहुत बुन लिए सुख के काल्पनिक सपनें ...

आओ निकल हर चाह हर लालसा से ...
हर निजी पीड़ा वेदना को कर दरकिनार ...
आओ निहारें कैसे दीखता है चाँद !
छू  कर देखें प्रकृति के रंग ....
कर के पुनर्जीवित विगत यादों को ...
देखें रंग आकृतियों में ढलते बादलों को ...

हवा की गंध को करे महसूस ....
सुने ध्वनी कलकल करती सरिता की ...
निहारें रंग हरसिंगार ,अमलतास के ...
नव्य नवेली भोर को जियें चलो खुलकर ...
लजीली साँझ की आओ जोहें फिर बाट 

तारों भरे आसमान में चलो ढूंढे अपना सितारा .....
भर दे ठहाकों से खुलके ,आंगन ये सूना सारा ...
द्वंद्वो से निकल कर ,कुंठा से उबर कर ...
चलो कुछ खुद को निखारें ,स्व अपना संवारें ...
करें याद भूले मूल्य ,खोजे तरक्कियों से परे संस्कार ...
तलाशे स्वयं में स्वयम को पुन्ह एक बार ..

इस से पहले की हो जाये बहुत देर ....
छोड़ के भौतिकता ,ये धन का फेर ..
बिखर सा गया कल हमारा तो क्या हुआ ?
आओ संवारे चलो अपना आने वाला कल 

Thursday, March 8, 2012

कैप्शन जोड़ें
मन उपवन हुआ ..
हुआ चेहरा गुलाब ...
चढ़ा रंग ऐसा  प्रणय का .
महका हर ख्वाब ..
भीनी भीनी सी महक से ,,,,
हुआ ये ह्रदय विभोर ...
भूला ह्रदय स्पंदन सारे...
मुड चला तेरी ओर....
हुए दर्द भी मिठास भरे ..
चन्दन सी हुई वेदना ...
खोये खोये से नयन ये ....
भूले सारी चेतना ....
बार बार देख आईना....
खुद ही खुद पर हूँ इतराती
चौंक उठती जरा सी आहट पे
नाम तेरा हूँ दोहराती ....
देख हुई सराबोर तेरे ही नूर से ...
चढ़ा मुझ पे तेरा ही शबाब 






 
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Wednesday, March 7, 2012

मै नहीं 
यूँ ही गलने वाली 
मोम की तरह 
जरा से ताप से 
यूँ ही पिघलने वाली  

हिम नहीं वो जो ...
जरा सी आँच से 
हो जाये पानी ....
शब्द नहीं कोरे ..
जो बन जाये ..
दर्द भरी कहानी 

ना हूँ मै वो दिया ..
जो बुझ जाये जरा 
से तूफानों में ..
वो जाम नहीं ..
छलका दे कोई भी 
मयखानों में ...

जीत हर कुछ भी हो 
मै नहीं डरने वाली ..
दुःख की आँच ..
कितना जलाये ..
पथ से नहीं टलने वाली ..

केवल सुख मिले मुझको 
ऐसी मेरी चाह नहीं 
सुख मिले या  टीस मिले
इन सबकी मुझे परवाह नहीं 

मै तो हूँ वो भोर सुनहरी 
लिए हूँ मैं सहस्त्रों हाथ ,.
बन कर चली स्वछंद सरिता सी 
लिए वक़्त को अपने साथ ,,

कर मुट्ठी में लक्ष्यों को अपने 
आतुर हूँ पूरे करने को सपनें 
ये बाधाएँ ये कठिनाई ..
देख बनी खुद मेरी हमराही .

मै हूँ वंशज उस वीर पुरुष की 
जो जड़ में पल भर में फूंक दे प्राण
मैंने सीखा उससे ,लेना और ,देना सम्मान 
मैं करती हूँ जो मन मे ठानी ...
हूँ निर्भय ,,हूँ ...स्वाभिमानी ..
मैं आशा हूँ सुनहरी वो ....
सबके ह्रदय में हूँ पलने वाली 


अबके होली का त्यौहार
कुछ यूँ मनाया जाये
भूल भेद भावों को ,
तोड़ धर्म  जाति का बंधन
कर अनदेखा अपने पराये को
सबको गले लगाया जाये
लगायें गुलाल सम्मान का
सौहार्द  का रंग ,और प्रेम के रस
में नहाया जाये
लाल गुलाबी रंग तो पड़ जायेंगे फीके
चेहरे को आशा विश्वास का रंग चढाया जाये
ख़ुशी उल्लास की घोंटे भंग फिर
समानता का जाम सबको पिलाया जाये
ऐसा लगे रंग ,विश्वास स्वाभिमान का
की कितना भी धोएं ,ना छुड़ाया जाये
हौंसलों की पिचकारी मे भर भी लो
निश्चयों  का पानी ,भिगो के सबका तन मन
 
ऐसा रंगों की कोई और कोई रंग चढाये ना चढ़ाया जाये