Wednesday, February 23, 2011

चकर्व्युह है धरम का
तोड़ सके तो तोड़ 
बिखरे से समाज को इंसानियत से जोड़
सदियों से पीड़ित शोषित जो
बैठे है अंधेरों में ,शांत सी लहरों से मन को
इन्कलाब क़ि और मोड़  
बहुत  हुआ जुल्म सितम 
चुप्पी क़ि कड़ियाँ तोड़ के 
आक्रोश क़ि कड़ियाँ जोड़ 
मुठियों को भींच ले ,और इरादों को बुलंद कर
अधिकारों क़ि जंग है ,दौड़ सके तो दौड़ 
कुछ सपने 
कुछ यादें 
कुछ सुनहरी 
कुछ धुंधले 
कुछ अपने कुछ पराये 
आओ मिल कर रचें एक 
संपूरण संसार   
जहाँ न कोई पराया हो 
ना हो झूठा ,ना फरेबी का व्यव्हार 
ना कोई छीने रोटी किसी की
ना औरों का हक कोई मारे 
बस मुट्ठी भर ही काफी है 
मेरे लिए तुमाहरे वादें 

चकर्व्युह है धरम का
तोड़ सके तो तोड़ 
बिखरे से समाज को इंसानियत से जोड़
सदियों से पीड़ित शोषित जो
बैठे है अंधेरों में ,शांत सी लहरों से मन को
इन्कलाब क़ि और मोड़  
बहुत  हुआ जुल्म सितम 
चुप्पी क़ि कड़ियाँ तोड़ के 
आक्रोश क़ि कड़ियाँ जोड़ 
मुठियों को भींच ले ,और इरादों को बुलंद कर
अधिकारों क़ि जंग है ,दौड़ सके तो दौड़ 
वो मसीहा था ,या कोई पीर 
या था कोई पैगम्बर या कोई फ़कीर 
औरों के दुःख को जिसने अपना बनाया
समानता का अवसर था जिसने दिलाया 
दबे कुचलों को दी जिसने पहचान 
दे कर लाचारों को अधिकारों क़ि लाठी 
खुद पी कर गरल अपमान का, हमको सम्मान की सौगात  बांटी
आज उनको हमारी और से देते हैं हम ये आश्वासन 
जब तक साँस है लड़ेंगे हम भी आये कितने भी शोषण के शासन
उनके नाम पर आज हम लेते हैं संकल्प ,बिखरे बंटे समाज का करेंगे काया कल्प 
और तोड़ कर ही रहेंगे मिल कर ये जाती पाति की जंजीर 

वो मसीहा था ,या कोई पीर 
या था कोई पैगम्बर या कोई फ़कीर 
औरों के दुःख को जिसने अपना बनाया
समानता का अवसर था जिसने दिलाया 
दबे कुचलों को दी जिसने पहचान 
दे कर लाचारों को अधिकारों क़ि लाठी 
खुद पी कर गरल अपमान का, हमको सम्मान की सौगात  बांटी
आज उनको हमारी और से देते हैं हम ये आश्वासन 
जब तक साँस है लड़ेंगे हम भी आये कितने भी शोषण के शासन
उनके नाम पर आज हम लेते हैं संकल्प ,बिखरे बंटे समाज का करेंगे काया कल्प 
और तोड़ कर ही रहेंगे मिल कर ये जाती पाति की जंजीर