Wednesday, March 7, 2012

मै नहीं 
यूँ ही गलने वाली 
मोम की तरह 
जरा से ताप से 
यूँ ही पिघलने वाली  

हिम नहीं वो जो ...
जरा सी आँच से 
हो जाये पानी ....
शब्द नहीं कोरे ..
जो बन जाये ..
दर्द भरी कहानी 

ना हूँ मै वो दिया ..
जो बुझ जाये जरा 
से तूफानों में ..
वो जाम नहीं ..
छलका दे कोई भी 
मयखानों में ...

जीत हर कुछ भी हो 
मै नहीं डरने वाली ..
दुःख की आँच ..
कितना जलाये ..
पथ से नहीं टलने वाली ..

केवल सुख मिले मुझको 
ऐसी मेरी चाह नहीं 
सुख मिले या  टीस मिले
इन सबकी मुझे परवाह नहीं 

मै तो हूँ वो भोर सुनहरी 
लिए हूँ मैं सहस्त्रों हाथ ,.
बन कर चली स्वछंद सरिता सी 
लिए वक़्त को अपने साथ ,,

कर मुट्ठी में लक्ष्यों को अपने 
आतुर हूँ पूरे करने को सपनें 
ये बाधाएँ ये कठिनाई ..
देख बनी खुद मेरी हमराही .

मै हूँ वंशज उस वीर पुरुष की 
जो जड़ में पल भर में फूंक दे प्राण
मैंने सीखा उससे ,लेना और ,देना सम्मान 
मैं करती हूँ जो मन मे ठानी ...
हूँ निर्भय ,,हूँ ...स्वाभिमानी ..
मैं आशा हूँ सुनहरी वो ....
सबके ह्रदय में हूँ पलने वाली 


अबके होली का त्यौहार
कुछ यूँ मनाया जाये
भूल भेद भावों को ,
तोड़ धर्म  जाति का बंधन
कर अनदेखा अपने पराये को
सबको गले लगाया जाये
लगायें गुलाल सम्मान का
सौहार्द  का रंग ,और प्रेम के रस
में नहाया जाये
लाल गुलाबी रंग तो पड़ जायेंगे फीके
चेहरे को आशा विश्वास का रंग चढाया जाये
ख़ुशी उल्लास की घोंटे भंग फिर
समानता का जाम सबको पिलाया जाये
ऐसा लगे रंग ,विश्वास स्वाभिमान का
की कितना भी धोएं ,ना छुड़ाया जाये
हौंसलों की पिचकारी मे भर भी लो
निश्चयों  का पानी ,भिगो के सबका तन मन
 
ऐसा रंगों की कोई और कोई रंग चढाये ना चढ़ाया जाये