Thursday, October 6, 2011


चलो भरते हैं उड़ान 
नभ की ओर .....
खोजते हैं इसका 
ओर छोर .
समेट के सारा 
अपना बल ..
तलाशते  हैं चलो 
सुनहरा कल
भूल विगत क़ी 
सारी हार ..
करे नयी जीत 
का आगाज ..
कैसा डर अनहोनी से 
लेंगे लोहा हर होनी से 
खुद करेंगे तय
मंजिल अपनी
पाएंगे   खोयी 
सी पहचान 
है माना वक़्त 
बहुत कम है 
पर अशक्त नहीं 
बाजु रखती दम है 
है कहाँ कोई
जो रोके हमको 
बुलंदी पे जाने 
से टोके हमको 
हम करेंगे करते 
आये हैं ,,,,,,,,बस 
मन मे लेते हैं जो ठान 

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