वो मसीहा था ,या कोई पीर
या था कोई पैगम्बर या कोई फ़कीर
औरों के दुःख को जिसने अपना बनाया
समानता का अवसर था जिसने दिलाया
दबे कुचलों को दी जिसने पहचान
दे कर लाचारों को अधिकारों क़ि लाठी
खुद पी कर गरल अपमान का, हमको सम्मान की सौगात बांटी
आज उनको हमारी और से देते हैं हम ये आश्वासन
जब तक साँस है लड़ेंगे हम भी आये कितने भी शोषण के शासन
उनके नाम पर आज हम लेते हैं संकल्प ,बिखरे बंटे समाज का करेंगे काया कल्प
और तोड़ कर ही रहेंगे मिल कर ये जाती पाति की जंजीर
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