कुछ सपने
कुछ यादें
कुछ सुनहरी
कुछ धुंधले
कुछ अपने कुछ पराये
आओ मिल कर रचें एक
संपूरण संसार
जहाँ न कोई पराया हो
ना हो झूठा ,ना फरेबी का व्यव्हार
ना कोई छीने रोटी किसी की
ना औरों का हक कोई मारे
बस मुट्ठी भर ही काफी है
मेरे लिए तुमाहरे वादें
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