चकर्व्युह है धरम का
तोड़ सके तो तोड़
बिखरे से समाज को इंसानियत से जोड़
सदियों से पीड़ित शोषित जो
बैठे है अंधेरों में ,शांत सी लहरों से मन को
इन्कलाब क़ि और मोड़
बहुत हुआ जुल्म सितम
चुप्पी क़ि कड़ियाँ तोड़ के
आक्रोश क़ि कड़ियाँ जोड़
मुठियों को भींच ले ,और इरादों को बुलंद कर
अधिकारों क़ि जंग है ,दौड़ सके तो दौड़